फूल-भंवर


परम प्रिये! पावन पुष्प परमानन्द पोषित ।

रश्मि रंगत ल्याव, समीर हिंडोला हिंडाव ।।१।।


रमा,रुद्राणी, रत्ती ज्युं रंगत चोखी-भली

लगत ज्यूं भव कूंज की कोमल कली ।।२।।


श्याम घटा घटी, लगी सावन की झड़ी ।

फुट पड़यो जोबनीयो, महक बरस पड़ी ।।३।।


महक स्यूं बहक पड़यो नवल छैल-भंवर।

गुन्जन करत हरदम मडराय रयो चहुं और।।४।।


फूल खिलत-फलत है, भंवर डुब्यो रस माहीं ।

मोह लग्यो भंवर स्यूं, भरी उमंग नस-नस माहीं।।५।।


उमंग री तरंग स्यूं चमक आई चांदणी ज्यूं।

चंदा सम चमक्यो पियो उणा री चांदणी स्यूं।।६।।





प्यारा प्यार

                         *प्यारा प्यार *

                       पता चला मुझे 

                       मैं प्यार करता हूं तझे ।


                      मैं तेरे ख्यालों में खो गया 

                      उस रात गहरी नींद सो गया

                      अगले दिन इजहार हो गया -

                      "मुझे तुमसे प्यार हो गया।"


                       चांद सा चेहरा तेरा

                       सितारों सी आंखे 

                       चांदनी सी चमक है।

                       अगर कहा तुमने मुझसे 

                       चांद सितारे लाने को 

                       तो तेरा ही चित्र ले आऊं मैं ।


                      प्यार की नदी है उफान पर

                      उमंग ले रही यह तेरी मुस्कान पर

                      फिर भी मुख मेरा मलिन है

                      मन मेरा भय के अधीन है।

                      तुम्हें पा जाऊं तो 

                     अधुरा पाने का डर है

                      तुम्हें खो देने मे भी

                      न भूल पाने का डर है।




मेवाड़ी माटी गो लाल

 

घणा ही राणा हुय्या 

बण राणो प्रताप हुय्यो 

घणकरा राणा पर भारी

बैरया पर जेउड़ी-जेउड़ी आंतो 

आजादी खातर लड़ ज्यांतो ।


सुणगे नावं प्रताप 

अकबर न चढ़ती ताव 

ताव म धाण धुकता 

बदन म पसीना छुटता 

एकर हिम्मत करगे सेना भेजी 

मेवाड़-सपुता इता कोजा कुट्या क 

हळदीघाटी म भाज्या दूस्मीड़ा 

ले-ले चप्पल हाता म ।

एकर ओरुं कुटिज्या 

बैरिड़ा दिवेर म 

बठ्यो गणो ही सीर पंपोळ्यो 

बण दोनुं गेड़ां 

अकबर साम कोनी आयो 

बिन ठा हो क 

राणो है मेवाड़ी माटी गो लाल 

भायड़ा

 घणी कोजी अदेड़ खाल 


Language - Rajasthani           Poem - Mevadi mati                                                                             go lal

बलिदान

                 



ए वतन कैसे चुकाएं हम अपनी कर्जदारी,

बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी।

कहती हमको बारम्बार कि 

जग मलिन हुआ जाता,

उठा लो तुम ज्ञान पताका,

मिटा दो जग की मलिनता सारी,

बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी,

ए वतन कैसे चुकाएं अपनी कर्जदारी।

भर गला कहते हम भी मां तुमको,

ओ मां!

इस पुत्र के लिए तुमने कितने कष्ट सहे

और अब भी सह रही हो पीड़ाएं,

परन्तु अब ऐसा न होगा,

किया जो आह्वान तुमने हमारा,

सोच रहे हम उनकी जो

नन्हें-नन्हें बालक कर रहे तेरी मिट्टी में क्रिड़ाएं,

प्रेम-मय, ज्ञान-मय रक्त मांग रही जिनकी धमनी- शिराएं,

जिनका ही होगा कल को तुम पर बसेरा,

हम उनकी तकदीर बदल देंगे,

तेरा संदेशा हम उनको कहेंगे,

गायेंगे वो तेरी महिमा प्यारी,

बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी,

ए वतन कैसे चुकाएं हम अपनी कर्जदारी।


Language - Hindi              POEM- BALIDAN 

                                        

        




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मंच पर

      *मंच पर*

मैं खड़ा था मंच पर,

थी थोड़ी झीझक,था थोड़ा डर,

था मन में उत्साह भरा,

अंदर बहती ज्ञान गंगा

कहे अब निकलुं अब निकलुं,

सोच रहा था-

अपनी मीठी बातों से मार लुंगा बाज़ी।

पर हाय! रुठ गया ज़माना

देवता भी न थे राजी,

समझ गया मैं कि

चाहा इन्द्रासन पर मिला निंदासन है ।

अचानक कोंधा विचार मन में,

लगा ये तो मुझ पर लांछन हैं,

आज उसी को धोने आया हूँ।

सुनो अब अखण्ड घोषणा मेरी,

सुनने में अब ना करो देरी-

" अब ना कोई व्यभिचार होगा,

मन में बस एक ही विचार होगा,

भारत का बच्चा-बच्चा बोलेगा,

कहेगा कोई ऐसी-वैसी बात नहीं

सीधा अपना अन्तर्मन खोलेगा।"

तब तक मुझे भी ना होगा आराम

आओ मिलकर शुरू करें काम

बोलो जय सीयाराम।




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चाहे जो हो जाए

    *चाहे जो हो जाए *

चाहे गुड़ गोबर हो जाए, मगर 

प्यार हमारा ना कभी नफरत होगा।

चाहे चंदा ना रहे आसमां में,

या कि सूरज के नाभिक 

खो जाएं नभ में,

या कि चमकते सितारे 

सो जाएं गगन की गोद में,

मगर हमारे प्यार से प्रफुल्लित 

प्रकाश तो रहेगा हमेशा;

सर्दी-गर्मी रहे ना रहे, मगर 

वसंत को लेकर कामदेव 

प्यार हमारा देखने आते रहेंगे।

क्या पता कभी हम भी 

रहें ना रहें, मगर हमेशा 

प्यार में मग्न हो हम

हर एक महफ़िल में

 आते रहेंगे।



सावन गी हूक




मन मग्न म्हारो मीत म

प्राण पड़िया थारी प्रीत म

कोयल कुकी, मोर नाच्यो 

भली बीरखां भई भव म 

हर जीव घणा किलोळ कर

मग्न सब प्रकृति उत्सव म

मन मग्न म्हारो मीत म 

प्राण पड़िया थारी प्रीत म ।

मग्न मनुज है प्रकृति संगीत म 

मेर ही मुख पर छाई उदासी 

थारी वाणी र बिन्या 

भुण्डा लाग कोयल-मौर 

विरह वेदना जाग उठी

देख बिरखां रो जोर

किलोळ म करुं किकर 

लागी मनड़ा म फिकर 

धीरे से दिल दहल गयो 

हुग्यो मुखड़ो म्हारो मलीन 

सोच पड़यो जद मन माहीं

सावण सरड़ाटा करतो गयो 

रह गया दिन चार बण नहीं 

नसीब मिलळ रा समाचार ।


फूल-भंवर

परम प्रिये! पावन पुष्प परमानन्द पोषित । रश्मि रंगत ल्याव, समीर हिंडोला हिंडाव ।।१।। रमा,रुद्राणी, रत्ती ज्युं रंगत चोखी-भली लगत ज्यूं भव कूं...