* सरूप*
रूप थारो सुहावणो
लाग प्यारो मनभावणो,
चमक चांदणी मुखड़ा री
लाग चंद्रकला पुर्णिमा री ,
आंख्या थारी ज्यु
मरूदेश गी गगरी,
होटा री मुळकण
गाला री छीटकण
ज्युं संध्या गी लाली,
बीचाळ खड़ी नाक नीराली
बदहाली म हरियाळी
गी कर रुखाळी ,
कान है हरी खातर
स्वर भोग गी प्याली,
लहराता मखमली बाळ
ललाट पर चंदन सोभीत
कर थारो मुखड़ो मन मोहित,
बाजु पर बाजुबंध
कलाई पर कंगन सुख पाव,
संत-योगी भी सरूप सराव
आप स्यूं मोटो तप थारो बताव
भग्त जन थान राधा बताव ,
पगां म पायल गी छणछण
पर प्रेमी हुव मदहोश, एसो
रूप थारो सुहावणो
लाग प्यारो मनभावणो।
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