मन मग्न म्हारो मीत म
प्राण पड़िया थारी प्रीत म
कोयल कुकी, मोर नाच्यो
भली बीरखां भई भव म
हर जीव घणा किलोळ कर
मग्न सब प्रकृति उत्सव म
मन मग्न म्हारो मीत म
प्राण पड़िया थारी प्रीत म ।
मग्न मनुज है प्रकृति संगीत म
मेर ही मुख पर छाई उदासी
थारी वाणी र बिन्या
भुण्डा लाग कोयल-मौर
विरह वेदना जाग उठी
देख बिरखां रो जोर
किलोळ म करुं किकर
लागी मनड़ा म फिकर
धीरे से दिल दहल गयो
हुग्यो मुखड़ो म्हारो मलीन
सोच पड़यो जद मन माहीं
सावण सरड़ाटा करतो गयो
रह गया दिन चार बण नहीं
नसीब मिलळ रा समाचार ।
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