ए वतन कैसे चुकाएं हम अपनी कर्जदारी,
बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी।
कहती हमको बारम्बार कि
जग मलिन हुआ जाता,
उठा लो तुम ज्ञान पताका,
मिटा दो जग की मलिनता सारी,
बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी,
ए वतन कैसे चुकाएं अपनी कर्जदारी।
भर गला कहते हम भी मां तुमको,
ओ मां!
इस पुत्र के लिए तुमने कितने कष्ट सहे
और अब भी सह रही हो पीड़ाएं,
परन्तु अब ऐसा न होगा,
किया जो आह्वान तुमने हमारा,
सोच रहे हम उनकी जो
नन्हें-नन्हें बालक कर रहे तेरी मिट्टी में क्रिड़ाएं,
प्रेम-मय, ज्ञान-मय रक्त मांग रही जिनकी धमनी- शिराएं,
जिनका ही होगा कल को तुम पर बसेरा,
हम उनकी तकदीर बदल देंगे,
तेरा संदेशा हम उनको कहेंगे,
गायेंगे वो तेरी महिमा प्यारी,
बलिदान मांग रही हमारी मिट्टी प्यारी,
ए वतन कैसे चुकाएं हम अपनी कर्जदारी।
Language - Hindi POEM- BALIDAN
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