किराए का मकान

 ‎तेरी आंखो में थोड़ी शरारत है 

‎देखुं जो मैं तेरी आंखों में 

‎मन मेरा जोरों से मचलता हैं 

‎जा रहा होता हूं मैं किसी और काम से 

‎किसी और रास्ते पर मगर न जाने क्यूं हर बार 

‎तेरे पिछे मेरा रास्ता बदलता है।

‎रास्ते की अहमियत तो तूझे पता होगी 

‎कि हर एक रास्ता किसी न किसी मंजिल को जाता है 

‎मगर न जाने क्यूं मेरा हर एक रास्ता 

‎तेरे मकान की और जाता है।

‎मकान किराए पर बहुत मिलते हैं 

‎हैं आलिशान मकान हमारे मोहल्ले में भी

‎मगर तुम्हारे मोहल्ले के उस कच्चे कोठरी से 

‎मकान की बात ही कुछ और है 

‎जहां रात को चांद दिन में सुरज दिखे ना दिखे 

‎मगर हर वक्त ठीक सामने तुम्हारा चेहरा दिखता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किराए का मकान

 ‎तेरी आंखो में थोड़ी शरारत है  ‎देखुं जो मैं तेरी आंखों में  ‎मन मेरा जोरों से मचलता हैं  ‎जा रहा होता हूं मैं किसी और काम से  ‎किसी और रास...