घणा ही राणा हुय्या
बण राणो प्रताप हुय्यो
घणकरा राणा पर भारी
बैरया पर जेउड़ी-जेउड़ी आंतो
आजादी खातर लड़ ज्यांतो ।
सुणगे नावं प्रताप
अकबर न चढ़ती ताव
ताव म धाण धुकता
बदन म पसीना छुटता
एकर हिम्मत करगे सेना भेजी
मेवाड़-सपुता इता कोजा कुट्या क
हळदीघाटी म भाज्या दूस्मीड़ा
ले-ले चप्पल हाता म ।
एकर ओरुं कुटिज्या
बैरिड़ा दिवेर म
बठ्यो गणो ही सीर पंपोळ्यो
बण दोनुं गेड़ां
अकबर साम कोनी आयो
बिन ठा हो क
राणो है मेवाड़ी माटी गो लाल
भायड़ा
घणी कोजी अदेड़ खाल
Language - Rajasthani Poem - Mevadi mati go lal